क्या वास्तव में Dexamethasone से हो सकता है कोरोना वायरस का इलाज? WHO ने ये कहा
सेहतराग टीम
कोरोना वायरस के इलाज के लिए डेक्सामेथासोन (Dexamethasone) को प्रयोग को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने स्पष्ट किया कि डेक्सामेथासोन कोविड-19 का इलाज या बचाव नहीं है और इसका इस्तेमाल सिर्फ डॉक्टर की निगरानी में बेहद गंभीर मरीजों पर किया जाना चाहिये जिन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है।
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डब्ल्यूएचओ (WHO) के स्वास्थ्य आपदा कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डॉ. माइकल रेयान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि डेक्सामेथासोन अपने-आप में वायरस का उपचार नहीं है। यह उसका बचाव भी नहीं है। दरअसल बात यह कि ज्यादा पावर वाले स्टेरॉइड मानव शरीर में वायरस की संख्या तेजी से बढ़ाने में मददगार हो सकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि यह दवा सिर्फ बेहद गंभीर मरीजों को दी जाए जिनको इससे स्पष्ट रूप से लाभ हो रहा है।
क्या है डेक्सामेथासोन (Dexamethasone)?
डेक्सामेथासोन दवा WHO की आवश्यक दवाओं की सूची में साल 1977 से लिस्टेड है। डेक्सामेथासोन एक स्टेरॉइड है जिसका उपयोग सांस की समस्या, एलर्जिक रिएक्शन, ऑर्थराइटिस, हार्मोन या इम्यूनिटी सिस्टम डिसऑर्डर और सूजन के इलाज के लिए किया जाता है। यह दवा शरीर का नैचुरल डिफेंसिव रिस्पॉन्स को भी कम करती है।
दरअसल ब्रिटेन में एक रिकवरी ट्रायल के दौरान अनुसंधानकतार्ओं ने पाया कि कोविड-19 के गंभीर मरीजों को यह दवा देने से मृत्यु दर काफी कम हो जाती है। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस दवा को 2104 मरीजों को दिया गया और उनकी तुलना साधारण तरीकों से इलाज किए जा रहे 4321 दूसरे मरीजों से की गई। दवा के इस्तेमाल के बाद वेंटीलेटर के साथ उपचार करा रहे मरीजों की मृत्यु दर 35 फीसदी तक घट गई। वहीं, जिन मरीजों को ऑक्सीजन दिया जा रहा था उनमें भी मृत्यु दर 20 प्रतिशत कम हो गयी। हालांकि हल्के लक्षणों वाले मरीजों को इस दवा से कोई लाभ नहीं होता।
इस दवा के बारे में बात करते हुए डॉ. रेयान ने कहा कि यह अधिक पावर की इनफ्लेमेशन की दवा होने के कारण ऐसे गंभीर मरीजों की जान बचा सकती है जिनके फेफड़ों में इनफ्लेमेशन है और जिन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया है। संभवत: यह दवा देने से बीमारी बेहद महत्त्वपूर्ण चरण में मरीज के फेफड़े का इनफ्लेमेशन कम हो जाता है और उनके रक्त में ऑक्सीजन की आपूर्ति जारी रहती है।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. तेद्रोस गेब्रियेसस ने परीक्षण के परिणामों पर प्रसन्नता जाहिर करते हुये कहा कि शुरुआती नतीजों के अनुसार, जिन मरीजों को सिर्फ ऑक्सीजन पर रखा गया है उनकी मृत्यु दर 80 फीसदी और जिन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया है उनकी मृत्यु दर दो-तिहाई कम करने में डेक्सामेथासोन कारगर रहा है। हालाँकि हल्के लक्षण वाले मरीजों पर इसका कोई लाभ नहीं देखा गया है। यह दवा डॉक्टरों की निगरानी में ही दी जानी चाहिए।
डॉ. रेयान ने कहा कि हमें इस तरह की और सफलताओं की जरूरत है। यह महज शुरुआती आंकड़े हैं और सिर्फ एक अध्ययन में सामने आये हैं। हमें उपचार प्रक्रियाओं में बदलाव की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये। उससे पहले चिकित्साकर्मियों को प्रशिक्षण देना होगा, इसकी खुराक के समझना होगा और यह समझना होगा कि इस दवा के इस्तेमाल के लिए मरीजों के चयन के मानक क्या होंगे।
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